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Wednesday, August 22, 2007

क्यों करें संहार उस तलवार से जो तुमने बनाई...

-पूजा प्रसाद

जब आरक्षण का हंगामा मचा हुआ था..लगता था मेरे आस पास सब कुछ- हर दोस्त, हर दुश्मन, हर संबंध- सब गड्मड् हो कर केवल दो हिस्सों में बंट गया है...एक जो हर हाल में आरक्षण विरोधी है और दूसरा जो हर हाल में आरक्षण हासिल कर लेना चाहता है। तब लगा ये...

लोक है परलोक मेरा
शिष्टता है फूहड़ता,
है समय के साथ चलना
शूद्रता, नीरवता।

अपनी कहानी हम कहेंगे
नौटंकी, बिदेशिया या नाचा।

कोई क्यों करे संहार उस तलवार से
जो तुमने बनाई।
हम करेंगे लेखनी से वार
यही है वीरता।

क्यों बनें पंडित कि-
जनेऊ तो नहीं पर ज्ञान
छाती पर अटा हुआ सा,
हम बनेंगे
हम रहेंगे
चमार कि-
ज्ञान रविदास के चमड़े में भी बहता।

अरे ओ यादव, लोध, जाटव, डाड्डिया
गोल मेज, कांटे-छूरियां,
रेशम जो तूने भर पाया,
साथ 'बैसाखी' रही तभी तो
यह सब रुचिकर पाया।
लेकिन जो पाया क्यों पाया
और जो पाया वो क्या भर पाया..

जड़ को खो दें, उससे पहले
जा जंगल 'गड़रिए' से लकड़ी ला,
ताकि जो विस्मृत जीवन में
मृत्यु पर याद रहे
दलित होने का दंश क्यों
जड़ पर अपनी मान रहे।---

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