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Sunday, February 10, 2008

अभय साधक को श्रद्धांजलि

बाबा आमटे जो कुछ करना चाहते थे उसके लिए एक जीवन शायद काफी नहीं थावो देश को जोड़ना चाहते थेपाकिस्तान जाकर वहां के लोगों को एकता का संदेश देना चाहते थेदंगों से उन्हें तकलीफ होती थी और वो सांप्रदायिक हिंसा का अंत चाहते थेवो देश से कुष्ठ रोग का अंत चाहते थेचाहते थे कि कुष्ठरोगियों का भी समाज का प्यार मिलेवो विस्थापन से होने वाली पीड़ा का अंत चाहते थेवो न्यायसंगत तरीके से पुनर्वास चाहते थेवो चाहते थे कि सरकार देश में न्यायप्रिय तरीके से शासन करेवो हर तरह के अन्याय का अंत चाहते थेलेकिन इन तमाम अधूरी इच्छाओं को साथ लिए बाबा आमटे गुजर गए

सरकार उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद करना चाहती है जो कुष्ठरोगियों के इलाज में सक्रिय रहालेकिन बाबा आमटे के जीवन का ये एक पहलू भर थादेश में कहीं भी अन्याय हो रहा हो तो लोगों को अक्सर बाबा आमटे की याद आती थीनर्मदा के विस्थापितों के आंदोलन में बाबा की भूमिका को लोग भुला नहीं पाएंगेसांप्रदायिक दंगों के खिलाफ उनकी मुखर आवाज हमेशा सुनाई देती थीबाबा आमटे को दुनिया ऐसे शख्स के रूप में भी याद रखेगी जो हमेशा विचार को कर्म में लागू करने के लिए सक्रिय रहे

सत्य के इस अभय अथक साधक को श्रद्धांजलि! सुनिए वैष्णव जन तो तैने कहिए...हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी से

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