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Friday, May 23, 2008

प्रचंड की राह रोके खडी रमिला

रमिला श्रेष्ठ पिछले महीने तक काठमांडू मे रहने वाली एक सामान्य गृहिणी थी. पति और दो बच्चों की उसकी छोटी सी दुनिया थी. पति रामहरी श्रेष्ठ एक रेस्टोरेंट चलाते थे जिससे उसका परिवार चलता था.

रामहरी से रमिला की मुलाक़ात १५ वर्ष पहले हुयी थी. दोनों मे प्यार हुआ और दो साल बाद यानी १३ साल पहले दोनों ने शादी कर ली. उसके बाद से उनका जीवन सामान्य ढंग से चल रहा था. पिछले साल तक ऐसा ही रहा जब काठमांडू के उनके मकान मे 'मैन पावर एजेंसी' के कुछ लोग किरायेदार के रूप मे रहने आये. बाद मे पता चला वे माओवादी पार्टी के गुरिल्ला दस्ते के लोग थे. इनमे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की तीसरी डिविजन का कमांडेंट विविध भी था. यही विविध रमिला की मौजूदा त्रासदी के केन्द्र मे है.

गत 27 मार्च को विविध के 17 लाख रुपये और एक रिवाल्वर गायब पाए गए. माओवादियों को रामहरी पर शक था. पहले घर पर और फिर कैंटोंमेंट मे रामहरी से पूछताछ की गयी. कुछ दिनो बाद गायब रुपये भी मिल गए. बावजूद इसके, विविध ने २७ एप्रिल को रामहरी से चितवन कैम्प चलने को कहा. मकसद था और पूछताछ.

रमिला फोन पर बार-बार सम्पर्क करती रही. हर बार उसे बताया जाता कि उसके पति को जल्द ही छोड़ दिया जायेगा. अन्तिम बार ५ मई को उसका पति से सम्पर्क हुआ. 'उनकी आवाज बहुत कमजोर थी. वे ठीक से बोल भी नही पा रहे थे.' रमिला के मुताबिक 'तब भी विविध ने मुझे बताया कि उन्हें निर्दोष पाया गया है और जल्द ही छोड़ दिया जायेगा.'

लेकिन, उपलब्ध जानकारियों के मुताबिक दस दिनो की कठिन यातनाओं की वजह से रामहरी की हालत बिगड़ने के बाद उसे ८ मई को चितवन अस्पताल मे भर्ती किया गया. अमानवीय यातनाओं ने दिमाग और किडनी को खराब कर दिया था. जल्द ही डाक्टरों ने रामहरी को मृत घोषित कर दिया. खुद विविध ने बाद मे रमिला के परिवार के सामने कहा कि लाश किसी नदी मे फेंक दी गयी.

पति की अंत्येष्टि करने तक से वंचित रमिला अब इस मामले मे कुछ सुनने को तैयार नही. उसका साफ कहना है कि जब तक पति को जिंदा या मुर्दा उसके सामने नही लाया जाता, वह कुछ नही सुनेगी. वह मीडिया से ही नही आम लोगों से भी कह रही है कि प्रचंड राष्ट्रपति या प्रधान मंत्री बनने लायक नही हैं. उनका पुरजोर विरोध होना चाहिए. अनेक एनजीओ सहित १०२ संगठन रमिला के समर्थन मे आगे आ चुके हैं. इनके आह्वान पर बुधवार (२० मई) को काठमांडू बंद का जबरदस्त असर रहा. रमिला की सभाओं मे भी काफी भीड़ जुट रही है.

इन्साफ की मांग करती इस अकेली सामान्य नेपाली महिला के प्रभाव से घबराए प्रचंड ने उससे मुलाकात कर उसका विरोध शांत करने की कोशिश की. मगर, मुआवजे की उनकी पेशकश ठुकराते हुए रमिला ने साफ कहा कि उसे इन्साफ चाहिए, पैसा नही.

रमिला कहती है, ' मुझे परवाह नही कौन मेरे साथ है और कौन नही. मैं इस मामले मे इन्साफ पाकर रहूंगी. प्रचंड लिखित रूप मे माफ़ी मांगें, विविध सहित तमाम दोषी पुलिस के हवाले किये जाएं और पूरे मामले की बारीकी से जांच करवा कर सभी दोषियों को कानूनसम्मत सजा सुनिश्चित की जाये.' उसी के शब्दों मे, ' यह कोई राजनीतिक एजेंडा नही है. मुझे मालूम है कई राजनीतिक दल भी इस मुहिम से जुड़ जायेंगे, लेकिन मैं राजनीति नही कर रही.'

विचारधारा और संगठन के बल पर नेपाल से राजशाही का खात्मा कर देने वाले देश के सबसे प्रभावशाली नेता का रास्ता रोक लेने वाली इस महिला का जीवट और उसका यह संघर्ष किसी भी मामले मे बहादुरी और शहादत के अन्य उदाहरणों से कमतर नही है.

देखना दिलचस्प होगा कि इन्साफ की इस लड़ाई मे प्रचंड किस तरफ खडे होते हैं और इतिहास बनाते इस नाजुक दौर मे एक सामान्य नेपाली गृहिणी रमिला की क्या और कैसी भूमिका बनती है.

4 comments:

गुस्ताखी माफ said...

काश कि कोई भूमिका बने
लेकिन राजगद्दी पर विराजने वाले इतने कुत्सित, मदमत्ते और वीभत्स हो जाते हैं कि सारी करनी और अकरनी कर डालते हैं. चाहे वो मुष्टंड हो या प्रचंड.
काश कि कोई भूमिका बने, हम तो बस आशा ही कर सकते हैं

vangmyapatrika said...

काश। यह बात सबको समझ आती .vangmaypatrika.blogspot.com
www.radiosabrang.com

Anonymous said...

अब पता चल गया होगा की क्यों काम्युनिस्म का अच्छे सिद्धांत होते हुए भी पुरजोर विरोध क्यों किया जाता है, ऊपर से ये बड़ा ही लुभावना लगता है पर हमने चीन और रूस में देख लिया की कम्युनिस्ट सत्ता में आने के बाद कैसे निरंकुश हो जाते हैं. रूस में करोड़ के लगभग हत्याएं हुई, चीन में अभी भी जारी हैं. दूर मत जाओ अपने पश्चिम बंगाल को ही देख लो. लोकतंत्र में तो कम से कम आवाज़ उठा सकते हो, पर यहाँ तो कोई उम्मीद ही नहीं. नेपाल अभी घोषित कम्युनिस्ट राष्ट्र नहीं हुआ वरना, रमिला जैसी कई और को विरोध दर्ज करवाने के एवज में बिना सुनवाई मौत ही नसीब होती.

आर. अनुराधा said...

सत्ता का लालच किसी के लिए सत्ता पाना ही चरम लक्ष्य बना दे और सत्ता मिलने पर उसे अपनी मुट्ठी में दबोचे रखना ही एकमात्र मकसद हो तो व्यक्ति किसी वाद के पक्ष में नहीं हो सकता। किसी सिद्धांत की वजह से नहीं, स्वार्थ की वजह से स्थितियां जटिल होती हैं। इस अदना सी लगने वाली महिला में सरलता है और न्याय पाने की चाह, जो उसे किसी भी कुटिल सत्ताधारी के मुकाबले ताकतवर बनाती है। जिसके पास खोने को होता है, उसे ही खोने का डर होता है। उस औरत ने तो अपनी सबसे प्यारी चीज खोई है और अब उसके पास खोने को कुछ बचा ही नहीं। अब तो उसे पाना ही है, थोड़ा या ज्यादा।

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